जो बुढ़ापे में फ्यूडल रहता है , जवानी भी उसकी बहुत क्रांतिकारी नहीं होती । अति बुढ़ापे को तुलसी ने --शव-- के समान जीना माना हैं । यदि जवानी अपनी नियति में क्रांतिकारी होती तो हमारा देश आज उसी मंजिल पर होता । जवानी की कोई कमी हमारे यहाँ नहीं हैं , लात मारें तो जमीन से पानी निकल सकता है पर बेरोजगारी के मारे क्या करें, कहाँ जाए , सोच तक नहीं पाते ?
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