Friday, 22 November 2013

सबसे बड़ा संकट
इस सभ्यता में खेतों
और खेती-किसानी करते
पहाड़ की तरह खड़े
नदियों की तरह सरस
जीवन नौका को
जैसे तैसे खेते
पेड़ों से बतिया
अपनी राम कहानी कहते
उन राम दीनो और बिहारी लालों पर है
जिन्होंने सूरज के उगने से पहले
अपनी जीवन यात्रा शुरू की
और डूबने से पहले घर में नहीं घुसे
फिर भी सफेदपोशी कुलकमल
उनका सब कुछ हड़प कर
कानूनी हिसाब किताब करते रहे


एक  जंजाल है जो
घेरे हुए है गांव-खेरे को
उसकी पोखरों , जोहड़ों में
 अब गाय-भेंसों को  पीने का नहीं
सब कुछ शहरी सुरसा के पेट में
समा रहा है आगे रास्ता नहीं सूझता
इतना अन्धेरा है
पुरानी  बावड़ियों की मुंडेरों पर
नए  लुटेरों ने अपनी चौसर बिछा ली  है
देखने-सुनने -समझने वाला कोई नहीं

चुनावी सभाओं में
उन बातों पर शोर मचा है जो
इन ग्वार-गोठों से
दूर का वास्ता तक नहीं रखती
कबीर दुखिया है
कौन सुनता है  दुःख उसका
कभी किसी ने नहीं सुना पर
वही दिखाता है रास्ता
कि पहचानो कौन है तुम्हारा दोस्त
और कौन है तुम्हारा  दुश्मन ?
यह पहचानने का 
और हिसाब-किताब को  समझने का  समय है ।

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