Saturday, 30 November 2013

वस्तुगत अहसास जब प्रबल हो जाते हैं तो वे आत्म को ऐसा धक्का देते हैं कि शब्द स्वतः बोलने लग जाते  है और ऐसे  शब्द केवल शब्द नहीं रह जाते  ,बल्कि ह्रदय से निकले   ईमानदार उदगार बन जाते हैं  , जिसे शास्त्रीय भाषा में  कविता कहा  गया है । आत्म-स्पर्श फिर जीवन-जगत से मिलकर  गहरा होता चला जाता है ,जिससे आत्म  और वस्तु  का फर्क ही मिट जाता है । जब यह फर्क मिट जाए तो समझो कविता सिर चढ़कर बोल रही है ।

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