वस्तुगत अहसास जब प्रबल हो जाते हैं तो वे आत्म को ऐसा धक्का देते हैं कि शब्द स्वतः बोलने लग जाते है और ऐसे शब्द केवल शब्द नहीं रह जाते ,बल्कि ह्रदय से निकले ईमानदार उदगार बन जाते हैं , जिसे शास्त्रीय भाषा में कविता कहा गया है । आत्म-स्पर्श फिर जीवन-जगत से मिलकर गहरा होता चला जाता है ,जिससे आत्म और वस्तु का फर्क ही मिट जाता है । जब यह फर्क मिट जाए तो समझो कविता सिर चढ़कर बोल रही है ।
No comments:
Post a Comment