Sunday, 10 November 2013

बढ़ रही है दौलत
बढ़ रही हैं तौंद
बढ़ रही हैं दीवारें
खिंच रहीं तलवारें
पर यह दुनिया मेरी नहीं
मेरी दुनिया में वे मेहनतकश हैं
जिन्होंने दुनिया बनाई है
जो  प्रजापति हैं ,जुलाहे हैं
सड़क बनाने वाले हैं रास्ता सुलभ कराते
हम तब ही कुछ चल पाते
आगे बढ़ पाते
जो फसल उगाते
मेरा पेट भर जाते
यह दुनिया  उन्ही की बनाई है
मेरे मन भाई और
मेरे मन में समाई है ।
यही है मेरी दुनिया
मुझे पता नहीं तुम्हारी कौन सी है ? 

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