Saturday 9 November 2013

आज  फिर से वे ताकतें सक्रिय  हैं जो अंधविश्वासों को राजनीति के आँगन के पालने में झुलाती हैं और लोग उनको बच्चों की तरह सहेजने लग जाते हैं ।  " संस्कृति" को जबसे सम्प्रदाय वादियों के हाथों में सौप दिया गया  है तबसे जनता में यह सन्देश गया है कि ये ही  संस्कृति के रखवाले हैं । संस्कृति का एक रास्ता धर्म-मजहब की गलियों से होकर जाता है । इसलिए  संस्कृति एक ऐसा मैदान बन जाता है  है जहां अंधविश्वासों की खेती आसानी से की जा सकती है । 

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