आज फिर से वे ताकतें सक्रिय हैं जो अंधविश्वासों को राजनीति के आँगन के पालने में झुलाती हैं और लोग उनको बच्चों की तरह सहेजने लग जाते हैं । " संस्कृति" को जबसे सम्प्रदाय वादियों के हाथों में सौप दिया गया है तबसे जनता में यह सन्देश गया है कि ये ही संस्कृति के रखवाले हैं । संस्कृति का एक रास्ता धर्म-मजहब की गलियों से होकर जाता है । इसलिए संस्कृति एक ऐसा मैदान बन जाता है है जहां अंधविश्वासों की खेती आसानी से की जा सकती है ।
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