Thursday 7 November 2013

सबसे पहले रेखा चमोली  को उनके जन्म-दिन पर बधाई, मुबारकवाद । रेखा स्वयं में एक ऐसी संज्ञा है , जो पृथ्वी की विविधता में उसकी सीमाओं को दर्शाती हुई उसके ताने-बाने से बनी  रिश्तों की गर्माहट से हमारा परिचय कराती है । कविता उनके यहाँ बनती नहीं , उपजती है जैसे बीज धरती से उपजता है । उपजने में कला का संयोजन नहीं करना पड़ता ,वह शब्द-व्यवहार के साथ ,-संग लगकर चली आती है । उसके पीछे रहते  हैं  कवयित्री के  व्यक्ति-समाज से उसके टूटते-बनते रिश्ते नाते , उसका क्रोध, उसकी करुणा , उसकी आकांक्षाएं ,उसका इतिहास , उसका भूगोल-,प्रकृति , उसकी उंच-नीच और इन सभी के बीच से पैदा हुए वे सरोकार , जो आदमीयत के लिए हर काल, हर युग,हर समय और हर स्थिति में जरूरी होते हैं । उनके अभाव में रेखा जी का मन कभी क्षोभ तो कभी आक्रोश का इज़हार करने से नहीं चूकता । यहाँ एक ऐसी स्त्री का चेहरा है , जो मानवता को अपनी धुरी बनाता है और पितृ-सत्ता की प्रधानता के काले रंग में डूबे समाज की भीतरी करतूतों को उजागर करता है । उसे कहीं से आश्वस्ति मिलती है तो वह है  प्रकृति की गोद ,जहां एक अनाम नदी बादलों के पास सागर का संदेसा पाकर दौड़ी चली जाती है । काश , ऐसे ही समाज के लोग भी किसी दुखी का संदेसा पाकर दौड़े चले जाते । यहाँ प्रकृति रूपकातिश्योक्ति की तरह आती है , जहां बादल ,नदी ,पर्वत , आकाश ,घाटियाँ और जंगल ही नहीं होते वरन इनके साथ बस्तियां भी होती हैं ।
                  रेखा जी ने कविता को लगातार अपनी बातचीत की लय में साधा है । वे कविता नहीं , अपने पाठक से सीधे संवाद करती हैं जैसे स्कूल में अध्यापिका अपने विद्यार्थियों से ।  इस बीच में जहां उनको अपनी सलाह देनी होती है , उसे बेझिझक देती हैं । एक बहुत खुली  और उमंग भरी स्त्री से यहाँ हमारा परिचय होता है , जो सारी उपेक्षाओं के बावजूद अस्तित्त्ववादियों की तरह टूटी-बिखरी नहीं है । उन्हें विशवास है कि जब चीजें यहाँ  तक आई हैं तो आगे भी जाएंगी । यह जीवन-यात्रा यहीं तक रुकने वाली नहीं है । क्योंकि उन्हें पता है -----कि प्रेम में /चट्टानों से भी घास उग आती है / और पेड़ की टहनी कलम के रूप में फिर से उग आती है । प्रेम ही उनका जीवनाधार है और यह इतना उदात्त है कि इससे सब कुछ बदला जा सकता है । हो बशर्ते प्रेम । जब हवा का बहना नहीं रोका जा सकता ,बीज का अंकुरित होना नहीं रोका जा सकता , फूलों का खिलना नहीं रोका जा सकता तो फिर ----
        कैसे रोक पायेगा /संसार की श्रेष्ठतम भावना /प्रेम का फलना - फूलना /

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