Monday 4 November 2013

'रसिया 'ब्रज का एक मधुर लोक - काव्य रूप है , । आज गोवर्धन पर्व पर भाई मूल चंद  गौतम ने इस सन्दर्भ में एक रसिया --"-ना मानै मेरो मनवा , मैं तो गोवर्धन कू जाऊं मेरे बीर " -----उद्धृत करके उस जमाने की याद दिला दी जब ---पांच आने की पाँव जलेबी आया करती थी और मेलों में महिलायें उनको खाने के लिए ही जाया करती थी । वर्त्तमान की दुर्गति में अतीत कितना मोहक बन जाता है । यह उस समय की बात है , जब रुपया, आना ,अधन्ना, पैसा,पाई और धेला  चला करते थे । 

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