Saturday, 2 November 2013

ब्रज में दीपावली के दिन दीप-दान किया जाता है । पहले दीपक की शुरुआत  अपने घर से नहीं आस-पड़ोस से होती थी  । मैं तुम्हारे घर में चांदना करूँ, तुम हमारे घर में ।मिलना-जुलना , हंसी ठट्ठा करना , बुजुर्गों का आदर करना ऐसे ही सीखते थे । पूंजी जन्य विषमता की अकड़ कुछ लंठ किस्म के लोगों में होती थी । बूढ़ी दादियों , ताइयों  , काकियों , भाभियों  के नातों को जानते थे । ईद की तरह दीपावली पर भी नए कपडे सिलवाने का रिवाज था । बाज़ार में बहुत खरीददारी का ऐसा रिवाज नहीं था कि अब पुष्य नक्षत्र लग गया है ---खरीददारी करो । पुष्य नक्षत्र की बात जायसी के --पद्मावत ---में अवश्य पढ़ी थी --"-पुष्य नखत सिर ऊपर आवा । हौं बिन नाह मंदिर को छावा । " इससे बरसात होने का अर्थ निकलता था । शायद अब धन की बरसात होने का निकलता है ।

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