Sunday 24 November 2013

आज की कविता में अपनी ख़ास जगह रखने वाले कवि शिरीष कुमार मौर्य ने --'-कई उम्रों की कविता' --- शीर्षक से लिखी इस किताब में अपने जीवनानुभवों की रोशनी में पूर्वज और अग्रज कवियों का स्मरण अपनी गद्य शैली में किया  है । इस गद्य को पढ़ते हुए उनका कवि कभी पाठक का साथ नहीं   छोड़ता । वह अपनी धारणाओं को छिपाता नहीं  और न ही उन प्रसंगों की अनदेखी करता है , जो आज भी हमारे काम के हैं । उसने यहाँ भी अपने  पूर्वज कवियों के ह्रदय,बुद्धि और हाथों को खोज लिया है । यह खोज मार्मिक तो  है ही , हमारे बुद्धि कौशल के  लिए उत्प्रेरक भी । ह्रदय और बुद्धि के संग हाथ का त्रिकोण ----ज्ञान, क्रिया और इच्छा की जीवन-त्रयी को लाकर , जैसे इस विखंडनकारी समय में एक संदेशवाहक का काम करता है कि मनुष्य  कभी काल के टूटे हुए  एकांत में नहीं जीता  । यहाँ जितने भी कवियों की उपस्थिति है , वे अपनी-अपनी जगहों पर होते हुए भी एक समय-समग्र की रचना करते हैं ,जिसका  अभाव शिरीष आज की अपने समय की कविता में महसूस करते हैं । पूर्वज- कवि-स्मरण उनके लिए सीख की तरह  है और उसमें पूरी बेबाकी तथा स्पष्टबयानी से खरेपन की खनक आ गयी है । कवि मानो अपनी जानकारी के लिए यह  सब  लिख-पढ़ रहा है । कहीं औपचारिकता का आग्रह  नहीं जैसा कि आलोचना में होता है । यहाँ एक कवि का गद्य है जो उनके अपने पहाड़ी  लोक की लय में समाया हुआ है ।
      यहाँ कवि की अपनी पसंद और अभिरुचियों का एक ताना बाना है । वह गद्य को लिखने के  बजाय बतकही की तरह कहता है । जैसे वह हमसे सीधे संवाद कर रहा है । इस गद्य-कृति में लीक -लकीर की तरह खींची गयी सीधी-सीधी रेखाएं नहीं वरन वे परेशान करने  वाले प्रश्न हैं जिनको वह  आज की कविता की कला के संदर्भ में लाजमी  मानता है । यहाँ पूर्वज  कवियों का   आकलन  उनकी जीवन-धर्मिता को साथ में लेकर चलने से वह पठनीय और  रमणीय बन गया है । इन आलेखों में शिरीष ने अपने अग्रज  कवियों के सानिध्य को जीवन की हलचल के रूप में खासतौर से  रेखांकित   किया  है ।पाठक-समाज इसका तहेदिल से स्वागत करेगा , मैं ऐसा सोचता हूँ ।   

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