Monday, 4 November 2013

आज बड़ी भैया दूज है , होली के बाद वाली छोटी भैया दूज होगी । जैसे रमजान के बाद की ईद ,बड़ी ईद होती है और बकरीद छोटी । आज के दिन भाई अपनी बहिन/बहिनों  के घर जाकर भोजन करता है और तिलक करवाकर उसे दूज की विदा के  रूप में कुछ रुपया -पैसा वस्त्र-आभूषण अपनी सामर्थ्य के अनुसार  देता है ।जहां भाई नहीं आ पाता वहाँ स्वयं बहिन ही भाई के घर यानी अपने पीहर जाकर इस रस्म को पूरा करती है ।  हमारे यहाँ बहिन-भाई का रिश्ता कुछ ऐसी ही भावात्मक डोर पर चलता रहा है । यद्यपि आज की लोभ-लाभ वाली दुनिया में इस धागे की  मजबूती पर असर हो रहा है । पैतृक संपत्ति में से भाई के माध्यम से कुछ न कुछ बहिन को देते रहने और सम्बन्ध की निरंतरता के लिए ऐसे विधान सामंती व्यवस्था के अंतर्गत किये गए । जो हमारी सामाजिक - आर्थिक - सांस्कृतिक संरचना में आज भी बने हुए हैं । इससे रिश्तों की दुनिया बनी रहने की सामूहिकता का फायदा ही फायदा है । इसके पीछे की एक कहानी है जिसे महिलाएं एक लोक-कथा के रूप में आज भी कहती और सुनती हैं । श्रीमती जी से यह कहानी आज मैंने सुनी  , वही लिख रहा हूँ । दीपावली के कुछ दिनों बाद की ही बात होगी कि एक बहिन अपने भाई के विवाह में जा रही थी । रास्ते में एक जगह पर उसे प्यास लगी , थोड़ी दूर चलने पर उसे एक कुआ नज़र आया । कुए पर एक बाल्टी और एक  नेजू पडी हुई थी और वहाँ पानी पिलाने वाली एक बुढ़िया बैठी हुई थी । बुढ़िया से उसने पानी माँगा और इसी क्रम में उन दोनों की बातचीत होने लगी । बुढ़िया के पास भविष्य -दृष्टि थी ,जिससे वह आगे की बातों को जान लेती थी । उसने बुढ़िया को दादी बना लिया और अपने  और भाई के भविष्य के बारे में पूछा । दादी बुढ़िया ने उसके अनुरोध  करने पर बताया कि तुम्हारे भाई का भविष्य अच्छा नहीं है यदि तुमने उपाय नहीं किया तो वह विवाह की वेदी पर ही ख़त्म हो जाएगा । उसे सांप डस लेगा । जब एक बड के पेड़  के नीचे से उसकी बरात निकलेगी तो वह पेड़ उसके ऊपर गिर सकता है , इसलिए तुझे अपने भाई को बचाने के उपाय करने होंगे । वह अपने घर पंहुची तो उसने एक पागल जैसा स्वरुप धारण कर लिया और विवाह के हर काम में अडंगा लगाने लगी । उसने दरवाजों को अपने अनुसार बनवाया और स्वयं बरात में जाने की जिद की , जब कि उस समय स्त्रियाँ बारातों में नहीं जाती थी । वह जिद करके अपने भाई की बरात में गयी । और रास्ते में पड़ने वाले पेड़ के नीचे से बरात को निकलने से रोका । जैसे ही बरात उस पेड़ के नीचे से निकली वह पेड़ धड़ाम से गिर पड़ा , किन्तु दूलह और  बरात को कोई नुकसान  नहीं हुआ । बरात जब बेटी वाले के गाँव पहुची तो उसने अपने दूलह भाई को उन दरवाजों के भीतर निकलने से बचाया जो गिरने ही वाले थे । वह फेरों के समय वर-दुल्हन के पास बैठी रही जहां उसने सांप से अपने भाई को बचाया । बरात के वापस आने पर वह अपने भाई-भावज के बीच जिद करके सो गयी और रात को जब एक सांप उसके भाई को डसने आया तो उसने उसके ऊपर पिटारी दाल दी । यहाँ भी उसने भाई को विपत्ति  से बचा लिया । इस से बहिन की भूमिका का पता सबको चल गया । इससे बहिन ,भाई की रक्षक और विपत्ति में काम आने वाली सिद्ध हुई । तभी से बहिन-भाई का पवित्र रिश्ता और मजबूत हो गया और यह हमारी संस्कृति का हिस्सा बन गया ।




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