जो खजूर के पेड़ पर बैठकर
सत्ता का रथ
हांक रहे हैं
उनको नहीं मालूम कि
जमीन पर रेंगने वाली
एक चींटी भी
हाथी के प्राण ले लेती है
यह ठीक है कि
देश का संविधान और क़ानून
उनके लिए
एक फटी हुई पतंग का तरह है
ओहदा गुलामों की फ़ौज को
खडी करता है
राज तो राज है
चाहे अंगरेजी हो
या मुगलिया
या हिंदी
पर जनता भी जनता है
और वह इक्कीसवीं सदी में रहती है
कुछ तो होगा ही
इक्कीसवीं सदी में ।
सत्ता का रथ
हांक रहे हैं
उनको नहीं मालूम कि
जमीन पर रेंगने वाली
एक चींटी भी
हाथी के प्राण ले लेती है
यह ठीक है कि
देश का संविधान और क़ानून
उनके लिए
एक फटी हुई पतंग का तरह है
ओहदा गुलामों की फ़ौज को
खडी करता है
राज तो राज है
चाहे अंगरेजी हो
या मुगलिया
या हिंदी
पर जनता भी जनता है
और वह इक्कीसवीं सदी में रहती है
कुछ तो होगा ही
इक्कीसवीं सदी में ।
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