Saturday, 10 August 2013

जो खजूर के पेड़ पर बैठकर
सत्ता का रथ
हांक रहे हैं
उनको नहीं मालूम कि
जमीन पर रेंगने वाली
एक चींटी भी
हाथी के प्राण ले लेती है

यह ठीक है कि
देश का संविधान और क़ानून
उनके लिए
एक फटी हुई पतंग का तरह है
ओहदा गुलामों की फ़ौज को
खडी  करता है

राज तो राज है
चाहे अंगरेजी हो
या मुगलिया
या हिंदी
पर जनता भी जनता है
और वह इक्कीसवीं सदी में रहती है
कुछ तो होगा ही
इक्कीसवीं सदी में ।









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