आज उत्तराखंड के कुमायूं अंचल की वह बात मुझे याद आ रही है ।वहां मेरे एक बेहद सरलमना दोस्त और कवी श्री महेश पुनेठा रहते हैं । वे कुशल अध्यापक और निस्पृह संगठनकर्ता है । उनके यहाँ श्रीमती पुनेठा के हाथों का बना पहाडी खाना खाने का सौभाग्य मुझे पिथोरागढ़ में मिला है , बेटे अभिषेक पुनेठा के साथ । कवि , सफल संगठनकर्ता और सहज मित्र श्री पुनेठा और उनके साथियों के सहयोग से नागार्जुन और केदार जन्म शताब्दी के प्रसन्न अवसर पर पिथोरागढ़ में एक गंभीर आयोजन उन्होंने किया था । मुझे भी इसमें शिरकत करने का अवसर उन्होंने सुलभ कराया था । इसमें प्रसिद्ध कथाकार और समयांतर के सम्पादक श्री पंकज बिष्ट भी शामिल हुए । वहाँ पहाड़ों और पहाडी जन-साधारण की ऊंचाइयों को देखने का सुखद अवसर भी मिला । पहाड़ की विशेषता होती है कि वह जितना ऊँचा होता है उतना ही गहरा और विस्तृत भी । यह बोध उसके पास जाकर जितना होता है उतना दूर से नहीं ।
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