Sunday, 25 August 2013

अभी पिछले दिनों प्यारे  दोस्त हरियश राय का एक नया और दूसरा उपन्यास ----मुट्ठी में बादल ----शीर्षक से प्रकाशित हुआ । मुट्ठी में बादल ---आधार प्रकाशन , पंचकूला से प्रकाशित है । पूंजीवादी व्यवस्था मानवता को जहां सुख-सुविधा के साधन उपलब्ध कराती हैं वही वह इसके एवज में विनाश बहुत करती है , जिसका परिणाम होता है --मानवता पर से ही विश्वास  उठने लगता है । लेकिन , जब हम नीचे की ओर देखते हैं तो दीपक की लौ कहीं टिमटिमाती नज़र आती है किन्तु होती यह मेहनत  की सभ्यता और संस्कृति  के पास ही । जहां मेहनत नहीं होगी ,वहाँ संस्कृति भी नहीं । हमारे अलवर के एक बहुत पिछड़े ग्रामीण अंचल के जल-आन्दोलन से सम्बंधित जीवनानुभवों  को आधार बनाकर इस उपन्यास की रचना की गयी है प्रत्यक्ष अनुभव करके । वे स्वयं इस इलाके में गए -उन्होंने -'तरुण भारत संघ 'द्वारा प्रवर्तित जल-अभियान को व्यवहार के स्तर पर देखा । मैं भी दो बार उनके साथ जाने का साक्षी हूँ । भाषा में कोई  गाँठ-गठीलापन नहीं है सीधी सहज सरल रेखा पर चलती हुई । कहानी की नाव में बिठाकर  पार उतारती  एक पठनीय कृति ।

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