कल शाम को अलवर में लगभग एक घंटे तक मेघ जमकर बरसे ---कडक -कडक कर । याद आई ---घन घमंड जिमि गरजत घोरा । यह सावन का आख़िरी दिन है । आज से भादों लग रहा है । बरसात के क्रमिक उतार चढ़ाव को देखकर अनुभव के आधार पर लोक में कहावत बनी -----सावन कड़का झड़ करै , भादों कड़का जाय ।
जो कोई कड़के क्वार में , नाज़ कूकरा खाय । ।
जो कोई कड़के क्वार में , नाज़ कूकरा खाय । ।
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