Tuesday, 20 August 2013

कल शाम को अलवर में लगभग एक घंटे तक मेघ जमकर बरसे ---कडक -कडक कर । याद आई ---घन घमंड जिमि  गरजत  घोरा । यह सावन का आख़िरी दिन है । आज से भादों लग रहा है ।  बरसात के क्रमिक उतार चढ़ाव को देखकर अनुभव के आधार पर लोक में कहावत बनी -----सावन कड़का झड़ करै , भादों कड़का  जाय ।
                                             जो कोई कड़के क्वार में , नाज़ कूकरा खाय । । 

No comments:

Post a Comment