विडंबना है कि हमारे यहाँ व्यक्ति के मन में एक जातिवादी चोर छिपा रहता है । वह गाहे-बगाहे प्रकट हो जाता है । जबकि कोई जाति विशेष का अमीर व्यक्ति अपनी ही जाति के गरीब की कोई खोज खबर नहीं लेता । ऐसा होता तो आज के बिरादरीवाद में कोई गरीब, असहाय और लाचार रहता ही नहीं । जातिवाद वोट लेने और गरीब मेहनतकश वर्ग को बहकाने के अलावा शायद ही और कोई काम करता हो । वह यदि किसी के काम आता है तो सिर्फ अमीर वर्ग के । वैसे हालात ये बना दिए गए हैं कि आज सबसे विश्वसनीय "जाति " ही रह गयी है ।
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