हरयुग में खरीददार रहे हैं
छोटा-मोटा बाज़ार भी रहा है
सीकरी रही है और संत भी
बिकने से जो बचा है
उसी ने सत्य, शिव और सुंदर को
रचा है
जोखिम उठाकर जो पैदल चला
त्रिलोचन की तरह
वही बच पाया है
बाज़ार में आदमी, कविता
चीजों की तरह
बोली लगाई जा रही है
लोग बिक रहे हैं
कुछ लोग अब भी हैं जो
बिकने को तैयार नहीं
अपनी आन पै डटे हैं
इसीलिये बिकने से बचे हैं
छोटा-मोटा बाज़ार भी रहा है
सीकरी रही है और संत भी
बिकने से जो बचा है
उसी ने सत्य, शिव और सुंदर को
रचा है
जोखिम उठाकर जो पैदल चला
त्रिलोचन की तरह
वही बच पाया है
बाज़ार में आदमी, कविता
चीजों की तरह
बोली लगाई जा रही है
लोग बिक रहे हैं
कुछ लोग अब भी हैं जो
बिकने को तैयार नहीं
अपनी आन पै डटे हैं
इसीलिये बिकने से बचे हैं
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