Saturday, 31 August 2013

गांधी जी ने अपनी कृति ----हिन्द स्वराज्य ----में दो तरह की तालीम की बात कही है एक अच्छी तालीम और दूसरी बुरी तालीम । सामान्यतया लोग हर तरह की तालीम 'अच्छी तालीम'समझ लेते हैं , किन्तु गांधी जी तालीम, तालीम में फर्क करते हैं । जो तालीम व्यवस्था अपनी ओर से दिलाती  है वह ज्यादातर अपने कारकुन तैयार करने के लिए । यह तो हम जानते ही हैं कि शिक्षा-नीति के नाम पर सन १ ८ ३ ५ में जो "एजुकेशन डिस्पैच "  यहाँ मैकाले की मार्फ़त लागू किया गया , थोड़े-बहुत फेर-बदल के बाद   आज तक वही चला आ रहा है । गांधी जी ने इस शिक्षा पद्धति के बारे में उस समय लिखा था --"उसका अच्छा उपयोग प्रमाण में कम ही लोग करते हैं । यह बात अगर ठीक है तो इससे यह साबित होता है कि अक्षर-ज्ञान से दुनिया को फायदे के बदले नुकसान  ही हुआ है । " उन्होंने यह बात भी उठाई है कि जो शिक्षा मुझे मिली है , उससे मैंने कितनों का भला किया है या करने की सोची है या मैं उससे सिर्फ अपने भले की ही सोचता और करता हूँ  । यह शिक्षा हमें स्वार्थी बनाती है या परमार्थी ? जो शिक्षा व्यक्ति को स्वार्थी बनाती है उसे अच्छी शिक्षा कैसे कहा जा सकता है ? वे लिखते हैं " उस आदमी ने सच्ची शिक्षा पाई है ,जिसकी बुद्धि शुद्ध , शान्त  और  न्याय-दर्शी है । उसने सच्ची शिक्षा पाई है , जिसका मन कुदरती कानूनों से भरा है और जिसकी इन्द्रियाँ उसके वश में हैं , जिसके मन की भावनाएं बिलकुल शुद्ध हैं, जिसे बुरे कामों से नफरत है और जो दूसरों को अपने जैसा मानता  है । "

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