प्रेम चंद जी ने तो अपने जीतेजी खूब झेला किन्तु आज की पीढी में ऐसा दमखम बहुत कम नज़र आता है । वह अपनी आलोचना नहीं, केवल प्रशंसा चाहती है और वह भी कालजयी रचनाकार होने की । इसके लिए सभी तरह की जुगत भिडाने की कला में वह पारंगत हो चुका है । कहते है कि हमारे महान कथाकार प्रेम चंद जी की , शवयात्रा में गिनेचुने लोग थे और जो उसे देख रहे थे वे कह रहे थे कि कोई मास्टर मर गया है । साधना , तपस्या जैसे शब्द , आज हमको पिछड़ेपन के खाने में रखते हैं । बाजारवादी विज्ञापन और आत्मकेंद्रिकता का गहरा असर हमारे मन पर पड़ता हुआ नज़र आ रहा है ।
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