आज राखी का त्यौहार है । रक्षा सूत्र का एक दिन । हर साल छोटी बहिन आती थी इस बार नहीं आ पाई तो राखी भिजवा दी । बहरहाल , जब कभी इस त्यौहार की शुरुआत हुई होगी तो संघर्ष के बीच या संघर्ष को मिटा देने के उद्देश्य से इस प्रथा का प्रचलन हुआ होगा । आरम्भ आरंभिक दो वर्णों के बीच से हुआ । शुरू में सामाजिक विभाजन चार वर्णों में नहीं हुआ था , केवल दो ही वर्ण थे । कदाचित वह वर्ण(रंग) विभाजन रहा होगा । श्यामल-गौर का जिक्र आज भी बार बार आता है । आरम्भ के वर्ण हैं ब्राह्मण-क्षत्रिय । उनके बीच सामाजिक तौर पर रिश्ते के स्तर तक आवाजाही थी । जो कालान्तर में जब वर्ण जन्मना कर दिए गए और सामंतवाद मजबूत होने लगा तो कुछ काल तक मिश्रित अवस्था अवश्य रही होगी । परशुराम और क्षत्रिय संघर्ष की कथा इसका प्रमाण उपलब्ध कराती है । लम्बे संघर्ष के बाद दोनों वर्णों में समझौता हुआ । उपनिषद काल में क्षत्रिय भी उपनिषदों की बहसों में भाग लेते थे और अपना विमत प्रस्तुत करते थे । अनेक क्षत्रिय विचारक हैं जो भौतिकवाद को रेखांकित करते हैं । और अध्यात्मवादी विचारधारा के विरोध में खड़े होते हैं इन्ही परिस्थितियों में ब्राह्मण-क्षत्रियों के बीच समझौता हुआ और एक अवसर पर ब्राह्मणों ने रक्षा करने का सारा दायित्व क्षत्रियों को सौंप दिया । उसी की याद में आज तक ब्राह्मण , रक्षा बंधन का दायित्व निभाते हैं ।
मैंने अपने बचपन में खूब देखा है जब हमारे गाँव के सभी ब्राह्मण परिवार हमारे यहाँ राखी बाँधने आते थे और उसके बाद ही हमारी घरेलू राखी मनाई जाती थी । इसके दक्षिणा स्वरुप अन्न का दान किया जाता था । ब्राह्मण राखी के रूप में सिर्फ एक धागा होता था जिसके बीच में आक की रंगी हुई रुई का टुकडा लगा रहता था । जिन्दगी में सहजता की प्रमुखता थी आडम्बर की नहीं । हमारे दादाजी हमको सभी का चरण स्पर्श करने का बाकायदा आदेश देते थे और वे हमको आशीर्वाद देते हुए दाहिने हाथ में स्वस्तिवाचन करते हुए राखी बांधते थे । समझ में कुछ नहीं आता था । बीच बीच में हुक्के के लिए चिलम भी भरकर लानी पड़ती थी । हमारी बैठक पर सभी जातियों के हुक्के-तम्बाकू ,पानी और अगिहाने की आग का चौबीस घंटे इंतजाम रहता था ।
इसी तरह पितृ -सत्तात्मक व्यवस्था में बहिन भाई के बीच संपत्ति के विवाद का एक मनोवैज्ञानिक समझौता करने के लिए रक्षा बंधन की शुरुआत हुई होगी । बाद में यह एक प्रथा की तरह चल निकला । आज बाज़ार के युग में चीन तक से राखी बनकर
हमारे देश में आ रही हैं और वर्गों के अनुसार लोग चांदी सोने की राखियों का प्रयोग करते हैं । राखी उद्योग चलाने वाले लोग करोडपति से लगाकर अरब पति तक बन गए हैं । राजनीति में भी राखी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । आज ही मीडिया में खबर है कि हमारे प्रदेश के मुख्य मंत्री के लिए इक्यावन फीट लम्बी राखी बनाई गयी है । बहरहाल, सभी भाई-बहिनों को शुभकामनाएं ।
मैंने अपने बचपन में खूब देखा है जब हमारे गाँव के सभी ब्राह्मण परिवार हमारे यहाँ राखी बाँधने आते थे और उसके बाद ही हमारी घरेलू राखी मनाई जाती थी । इसके दक्षिणा स्वरुप अन्न का दान किया जाता था । ब्राह्मण राखी के रूप में सिर्फ एक धागा होता था जिसके बीच में आक की रंगी हुई रुई का टुकडा लगा रहता था । जिन्दगी में सहजता की प्रमुखता थी आडम्बर की नहीं । हमारे दादाजी हमको सभी का चरण स्पर्श करने का बाकायदा आदेश देते थे और वे हमको आशीर्वाद देते हुए दाहिने हाथ में स्वस्तिवाचन करते हुए राखी बांधते थे । समझ में कुछ नहीं आता था । बीच बीच में हुक्के के लिए चिलम भी भरकर लानी पड़ती थी । हमारी बैठक पर सभी जातियों के हुक्के-तम्बाकू ,पानी और अगिहाने की आग का चौबीस घंटे इंतजाम रहता था ।
इसी तरह पितृ -सत्तात्मक व्यवस्था में बहिन भाई के बीच संपत्ति के विवाद का एक मनोवैज्ञानिक समझौता करने के लिए रक्षा बंधन की शुरुआत हुई होगी । बाद में यह एक प्रथा की तरह चल निकला । आज बाज़ार के युग में चीन तक से राखी बनकर
हमारे देश में आ रही हैं और वर्गों के अनुसार लोग चांदी सोने की राखियों का प्रयोग करते हैं । राखी उद्योग चलाने वाले लोग करोडपति से लगाकर अरब पति तक बन गए हैं । राजनीति में भी राखी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है । आज ही मीडिया में खबर है कि हमारे प्रदेश के मुख्य मंत्री के लिए इक्यावन फीट लम्बी राखी बनाई गयी है । बहरहाल, सभी भाई-बहिनों को शुभकामनाएं ।
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