हामिद की ईद
आने ही वाली है
हामिद की ईद
लाने ही वाली है
भरकर खुशियों की टोकरी
पर ,हामिद की खुशी
अपनी दादी को लोहे का
एक चिमटा
खरीदने में है
वह जानता है
कि बिना चिमटे के
हाथ जलते हैं दादी के
रोटी पलटते हुए ।
ईद को हामिद के अलावा
कौन है जो समझ पाया है ?
शायद दूसरा कोई नहीं ।
आने ही वाली है
हामिद की ईद
लाने ही वाली है
भरकर खुशियों की टोकरी
पर ,हामिद की खुशी
अपनी दादी को लोहे का
एक चिमटा
खरीदने में है
वह जानता है
कि बिना चिमटे के
हाथ जलते हैं दादी के
रोटी पलटते हुए ।
ईद को हामिद के अलावा
कौन है जो समझ पाया है ?
शायद दूसरा कोई नहीं ।
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