Friday, 9 August 2013

भिखारी ठाकुर की कला में जमीनी गंध और रंग घुले -मिले होते हैं ।  मुझे जौकहरा  में देखे ----बिदेसिया- की याद हो आई । भोजपुरी लोक-नाट्य की अद्भुत  प्रस्तुति। काश ,विभूति नारायण राय  की तरह हरेक लोक-कला प्रेमी को यह सुविधा होती  कि स्थानीय लोक-कला रूपों को लेकर वह कुछ ऐसा कर सके कि नवजागरण की एक नयी मुहिम हर स्तर पर चल सके ।
भिखारी ठाकुर की तरह हमारे यहाँ --अलीबख्शी ख्यालों की एक परम्परा रही है । जिसके अनेक कलाकार पाकिस्तान चले गए और यहाँ जो रहे ,वे गरीबी के बोझ के नीचे दबे रहे । चाहती तो अकादमियां यह काम कर सकती थी पर उनको बंदर-बाँट  से फुर्सत जो मिले ।

No comments:

Post a Comment