विचारधारा गुड का पुआ नहीं है कि उसका स्वाद हरेक को एक जैसा ही मिले । उसे चबाना पड़ता है और सीढीनुमा जिन्दगी से तार जोड़ना पड़ता है । इसी में मत -भिन्नता हो जाया करती है । विचार धारा एक हो सकती है , लोग तो अनेक और तरह तरह के हैं । एकता तो हिन्दू - मुसलमानों में इस आधार पर होनी चाहिए कि दोनों ही एक मिट्टी के बने हुए इंसान हैं किन्तु जीवन-संरचना की विविधता ने उनके बीच एक रेखा खींच रखी है । विज्ञान का ज़माना भी इस रेखा को मिटाने में उतना सफल नहीं हुआ है , जितना मारक हथियार बनाने में । इंसान एक होता तो विचारधारा की शायद जरूरत ही न पड़ती ।
No comments:
Post a Comment