कलाएं प्रकृतिगत पारस्परिकता रखती हैं जैसे दो सच्चे मित्र ,किन्तु दोनों की स्वायत्तता ख़त्म नहीं हो ,यह भी जरूरी है । दोनों के मिलन बिंदु पर ऐसा महसूस होने लगे कि चित्र , कविता है और कविता,चित्र है । इसके बावजूद दोनों अपनी -अपनी सत्ता का अहसास भी लुप्त नहीं होने दें ।
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