जरूरत इस बात की है कि हम उसके सांस्कृतिक पाठ को और उसके सारतत्व को सामान्य जन तक पहुचाएं । हमारे अपने लोगों को ही तुलसी से परहेज रहता है फिर क्या किया जाय ? जब अपने कुनबे में फूट होती है तो शत्रु पडौसी उसका लाभ उठाते हैं । तुलसी का रूढ़िवादी धार्मिक पाठ ही सामान्य जन के समक्ष रहता है । जबकि तुलसी आज भी जन-जन के ह्रदय में बसा है ।
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