कहते हैं जब गीदड़ की
मौत आती है तो
वह गाँव की तरफ भागता है
गीदड़ चाहता है कि
जंगल के बेर उसके
कहने से पक जाँय
पर जंगल अपनी
चाल से चलता है
हिंडोले सावन में
पावस की फुहारों
और मेघ-घटाओं के
संगीत के बिना
नहीं सजते
आल्हा जेठ में
किसान तभी गाता है
जब फसल उठाकर
घर में ले आता है
सोरठ आधी ढल जाने पर
अपने सुरों को
सारस के पंखों की तरह खोलता है
पर यह कैसा समय है
जब समय की पुडिया बनाकर
कुछ लोग उसे
चूरन-चटनी की तरह
बेचने में लगे हैं
खेतों की अभी जुताई भी नहीं
और उधर फसल के
गीत वे लोग गा रहे हैं
जिन्होंने कभी
हल की मूंठ भी नहीं पकड़ी ।
मौत आती है तो
वह गाँव की तरफ भागता है
गीदड़ चाहता है कि
जंगल के बेर उसके
कहने से पक जाँय
पर जंगल अपनी
चाल से चलता है
हिंडोले सावन में
पावस की फुहारों
और मेघ-घटाओं के
संगीत के बिना
नहीं सजते
आल्हा जेठ में
किसान तभी गाता है
जब फसल उठाकर
घर में ले आता है
सोरठ आधी ढल जाने पर
अपने सुरों को
सारस के पंखों की तरह खोलता है
पर यह कैसा समय है
जब समय की पुडिया बनाकर
कुछ लोग उसे
चूरन-चटनी की तरह
बेचने में लगे हैं
खेतों की अभी जुताई भी नहीं
और उधर फसल के
गीत वे लोग गा रहे हैं
जिन्होंने कभी
हल की मूंठ भी नहीं पकड़ी ।
No comments:
Post a Comment