इस समय
आज़ादी का दिन है
और प्याज है
क्या दोनों में कहीं
जनता की आवाज है ?
हमें अपने देश पर नाज़ है
यहाँ कुछ सरपरस्त हैं
कुछ सरताज हैं ।
भंवरों में फंसा एक जहाज है
भरोसा यही है कि
हमारी रोटी संग की जुगलबंदी
प्याज पृथ्वी पर बची रहेगी ।
प्रेम को बचाने वाले
कवियों से निवेदन है कि
आओ ,बचाना है तो पहले प्याज को बचाओ
यह गरीब की रोटी का आस्वाद है ।
आज़ादी का दिन है
और प्याज है
क्या दोनों में कहीं
जनता की आवाज है ?
हमें अपने देश पर नाज़ है
यहाँ कुछ सरपरस्त हैं
कुछ सरताज हैं ।
भंवरों में फंसा एक जहाज है
भरोसा यही है कि
हमारी रोटी संग की जुगलबंदी
प्याज पृथ्वी पर बची रहेगी ।
प्रेम को बचाने वाले
कवियों से निवेदन है कि
आओ ,बचाना है तो पहले प्याज को बचाओ
यह गरीब की रोटी का आस्वाद है ।
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