हमारे समाज की सामाजिक संरचना किसान को कभी किसान की पहचान नहीं देती । वह किसान से पहले एक बिरादरी या गोत्र होता है । वैसे तो यह बीमारी पूरे हिन्दुस्तान की है । यहाँ सबसे पहले आदमी की जात पूछने का रिवाज और वही उसकी पहचान की पहली सीढी है फिर वहएक समग्र किसान समूह के रूप में संगठित कैसे हो ?, यह चुनौती हमेशा दरपेश रहती है ।अखिल भारतीय किसान सभा ---एक औपचारिक और असमंजसपूर्ण तरीके से उनको संगठित करने की कोशिश करती रही है । पर राजनीतिक चेतना के स्तर पर वे जात को ज्यादा विश्वसनीय और प्रामाणिक मानते हैं । जो और जिस तरह की राजनीति देश में होती है उसका मूलाधार अभी तक जात-बिरादरी बना हुआ है । यह दीवार टूटे तो कुछ बात आगे बढे ।
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