निलय भाई बात तो इन पर भी की गयी है और की जा रही है । यदि बात की नहीं जाती तो आज यह बात भी नहीं होती जो हो रही है । लेकिन जो लोग बात कर रहे हैं वे स्वयं उन केन्द्रों में नहीं हैं , जहां से बात सुनना माना जाता है । आप जानते हैं कि कविता में 'लोक' की बात करने वाले कई मित्र-कवि यकायक पैदा नहीं हो गए हैं , उन पर कहीं न कहीं और कुछ तो हुआ है । और यह सिलसिला चल रहा है , धैर्य की जरूरत है और लगातार कठोर काम करने की । शौर्य और धैर्य दो पहिये हैं उस रथ के , त्रिलोचन ने अपने एक सॉनेट में तुलसी के रूपक की जिस अर्धाली को उद्दृत किया है ,उसे दिल में बिठा लेने की जरूरत है । वह व्यक्ति-चरित्र की कसौटी है ।
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