'निराला की जय तुम्हारी देख भी ली' ---- कविता पर विजेन्द्र जी ने सवाल उठाया कि --निराला ने मृत्यु की रेखा को नीली क्यों कहा , जबकि काली लिखने से मृत्यु की भयावहता का बोध होता । मुझे इसका उत्तर यह समझ मीन आया ----पहली बात तो यह है कि कवि मृत्यु को देखते हुए भी अभी जीवित संसार में रह रहा है । उसके संज्ञान में जीवन है जहाँ मौत जैसी मारक चोट पड़ते हुए भी वह उसे बर्दाश्त कर रहा है , आत्मघात नहीं कर रहा । और चोट का रंग नीला ही होता है , काला नहीं । जब अध्यापक बेंतों से छात्रों को पीटा करते थे तो शरीर में नील उपड आती थी । आपकी स्वयं की एक लम्बी कविता है ----उठे गूमड़े नीले । मैं इसको इसी अर्थ में देखता हूँ ।
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