Friday, 9 August 2013
केशव भाई की कविताई कहीं बताशे सी तो कहीं गन्ने जैसी भी होती है जिसे चूसने ----ब्रज में चौखने ----में दांतों की कुछ ताकत भी लगानी पड़ती है । अन्यथा खुलईन ताल का सूखना हमारी संवेदना-बुद्धि से सिर से ऊपर होकर निकलने का ख़तरा रहता है ।
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