दिवाली तो हमेशा से सेठ-साहूकारों का त्यौहार रहा है अग्रवाल भाई जी । उसमें संत कहाँ से आ गए । सच्चे संत का स्वभाव समरसतावादी होता है । फिर , कहावत तो कहावत है जहां जिस रूप में प्रचलित हो जाय । हम तो विचित्र स्वभाव वाले लोग हैं जहां अपमान करने के अर्थ में ----हिंदी कर दी ----जैसा मुहावरा चल निकला और मजबूरी का नाम महात्मा गांधी हो गया ।
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