Wednesday 14 August 2013

पाताल भुवनेश्वर हैं जैसे उत्तराखंड में
वैसे ही हैं छत्तीसगढ़ में
कोटमसर की गुफा
सिरजा है प्रकृति ने
अपने आवासों को सबके लिए
इन पर किसी एक धन्नासेठ का कब्जा नहीं
प्रकृति से बड़ा उदार और
विशाल ह्रदय कौन है
इस धरती पर


पाताल भुवनेश्वर में
मैं और केशव भाई
इस अंधी गुफा में नीचे नहीं उतरे थे
जैसे पहली बार कोटमसर में मेरी
सांस फूल गयी थी
पर कविमित्र शाकिर अली , विजय सिंह के साथ
पैठ गुए थे गुफा में
कविमित्र अग्निशेखर

दूसरी बार फिर  बस्तर जाना हुआ
तो नाट्यकर्मी, कवि और सफल आयोजक विजय  सिंह
फिर से ले गए थे कोटमसर 
दंडकारण्य
इस बार तो गुफा के आकर्षण ने
खींच लिया था अपने भीतर


ऐसा लगा जैसे उत्तराखंड
का पाताल भुवनेश्वर
छत्तीसगढ़ में कोटमसर बन
अपना रूप परिवर्तन कर
समझा रहा था
कि आदमी को अभी भी
हमसे बहुत कुछ सीखने की जरूरत है ।

No comments:

Post a Comment