Thursday 22 August 2013

समय ऐसा आ गया है
कि अब वही बचा रहेगा जो
बचने की कोशिश नहीं करेगा
जो बचा ,सो मरा

सुनने में अच्छा लगता है
 यह सत्य पर  पूरा नहीं
अब जरूरत आ गयी है बचने की
जैसे घास को घोड़े से बचना पड़ता है
लडकी को उन जगहों से
उन आँखों से जिनमें
आग की झल निकलती है

अभी ऐसा फूल कहाँ जो
निदाघ के दाघ  से खुद को बचा सके
अंधेरा इतना गहरा है कि
रोशनी को लोग अन्धेरा कहकर
सत्ता की मुंडेरों पर
बन्दर की तरह उछल कर जा बैठे हैं

अभी बचने और बचाने
दोनों की जरूरत हैं नहीं तो नदी
पावस में भी बहने से इनकार कर देगी

ये फूल जिस मंजिल तक
आ पंहुचे हैं
फल आने में अभी देर है
जिन्होंने इन पौधों को लगाया है
उनके हाथ बंधे हैं
बंधे हाथों और फूलों का सही रिश्ता
जिस रोज
दोनों समझ जायेंगे
न बचने की जरूरत रहेगी
न बचाने की ।

































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