मीडिया वर्चस्ववादी ताकतों की वैध संतान नहीं है । आवारा पूंजी उसकी जननी है । उसे भी तथाकथित शिक्षित समुदाय ही चलाता है । मीडिया कर्म बिचोलिआ की भूमिका में रहता है । कभी कभी गरीब के काम भी आ जाता है जिससे उसकी थोड़ी बहुत विश्वसनीयता बनी रहे । वह आदमी की मानसिक गलियों में घुसकर उसी के हथियार से उसी को मारता है ।
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