Tuesday, 20 August 2013

इतिहास बोध और  चीजों के आपसी रिश्तों को उनकी द्वंद्वात्मकता में उठाने पर ही चिंतन को सही दिशा मिलती है ।  ,हमारे देश में इतनी विविधता है कि वह ही कई बार एकता के लिए ख़तरा बन जाती है । फिर तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या में रोजगारों की आपाधापी मचती है । हमारे देश की  यह बदकिस्मत रही कि जब हम व्यापारिक पूंजीवाद से सम्पन्न हुए तो हमारी विविधता और विभाजनकारी मानसिकता ने देश को अंगरेजी उपनिवेश बना दिया । इसका परिणाम यह हुआ कि यहाँ जिस तरह का देशज विकास --औद्योगिक---- होना चाहिए  था ,वह अवरुद्ध हो गया । अंग्रेजों की आधीनता से पहले हमारी इतनी कृषि -निर्भरता नहीं थी जितनी अंगरेजी शासन ने हमारी बना दी । अंग्रेजों ने अपने स्वार्थ के लिए हमको अलौकिकता  का पाठ   कुछ ज्यादा ही पढ़ा डाला  । इससे हमारे यहाँ अंध-राष्ट्रवादी ताकतों को आसानी से अपनी जगह हासिल होती गयी । हिन्दू और मुसलमानों  के नाम से विश्वविद्यालय खोले गए ,जो राष्ट्रीयता की दृष्टिसे अलगाव को मजबूत करते हैं । दूसरे , हमारे यहाँ राष्ट्रीय नवजागरण का काम पूरा नहीं हुआ, जिसका खामियाजा   हमको आज तक भुगतना पड़ रहा है । स्थानीयता सारी दुनिया के समाजों में है लेकिन वह राष्ट्रीयता के मेल में है । आदमी अपनी स्थानीयता को प्यार करता है यह उसकी स्वभावगत क्रिया है । जरूरत इस बात की है कि स्थानीयता का राष्ट्रीयता से अन्तर्विरोध न हो । लेकिन जब राष्ट्रीयता ही विकलांग अवस्था में हो, तब मुश्किल बढ़ जाती है । कोई देश अपने आप राष्ट्र नहीं बनता उसकी संस्कृति और एकदेशीयता उसे राष्ट्र में बदलते हैं । 

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